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Indira Ekadashi 2025: कब है इंदिरा एकादशी? जानिए तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और उपाय

Indira Ekadashi 2025: 16 या 17 सितंबर कब है इंदिरा एकादशी? जानिए तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और उपाय

हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। यह तिथि पितृपक्ष में आती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है और पूर्वजों की आत्मा को शांति व मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्राद्ध करने वालों के लिए यह खास दिन माना गया है। इंदिरा एकादशी व्रत से पापों का क्षय होता है और पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष मिलता है। जीवन में शांति, समृद्धि और मनोकामना पूर्ति की आशा होती है। पितृपक्ष के दौरान यह व्रत करने से विशेष पुण्यफल प्राप्त होता है।

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इंदिरा एकादशी का क्या महत्व है

हम बात करने जा रहे हैं इंदिरा एकादशी के बारे में, जो पितृ पक्ष में आती है। इस एकादशी को अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से और पुण्य कार्य करने से पितरों की मुक्ति मिलती है। साथ ही उन्हें मोक्ष मिलता है। वहीं इंदिरा एकादशी के व्रत से पापों का क्षय होता है। साथ ही सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है। वहीं इस दिन गौरी योग, शिव योग और परिघ योग बन रहा है, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है। साथ ही त्रिग्रही योग भी बन रहा है। आइए जानते हैं कब है इंदिरा एकादशी का व्रत, तिथि और शुभ मुहूर्त…

इंदिरा एकादशी शुभ मुहूर्त

ज्योतिष पंचांग के मुताबिक आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की ekadsahi तिथि 17 सितंबर को देर रात 12 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी और 17 सितंबर को देर रात 11 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदयातथि के अनुसार 17 सितंबर को मनाई जाएगी।

इंदिरा एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर किया जाएगा। वैदिक पंचाग के अनुसार, व्रत पारण करने का शुभ मुहूर्त 18 सितंबर (Indira Ekadashi shubh muhurat) को सुबह 06 बजकर 07 मिनट से लेकर 08 बजकर 34 मिनट है। इस दौरान किसी भी समय व्रत का पारण कर सकते हैं। पारण करने के बाद विशेष चीजों का दान मंदिर या गरीब लोगों में जरूर करें।

Indira Ekadashi Pooja Vidhi

इस दिन सुबह स्नान करने के बाद प्रभु के नाम का ध्यान करें। इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें। भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करें। मंत्रों का जप और विष्णु चालीसा का पाठ करें। इसके बाद सात्विक भोजन, फल और मिठाई का भोग लगाएं। प्रभु से जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति के लिए कामना करें। आखिरी में प्रसाद ग्रहण करें।

प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र पहनें और घर के पूजा स्थान को अच्छी तरह साफ करें। भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। गंगा जल या शुद्ध जल से अभिषेक करें और चंदन, अक्षत, फूल, धूप, दीप से पूजन करें। विष्णु सहस्रनाम या उनके मंत्र का जप करें। पूजा के बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें और दिनभर भक्ति व स्मरण में रहें। भगवान विष्णु को तुलसी जी और सात्विक भोग अर्पित करें। व्रत रखने वाले पारण समय में अगले दिन व्रत खोलें।

इंदिरा एकादशी व्रत कथा

इस दिन भगवान विष्णु के ऋषिकेश स्वरूप की पूजा की जाती है और व्रत कथा सुनना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस व्रत के पालन से पितरों का उद्धार होता है और व्रती को जीवन के अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इंदिरा एकादशी का महत्व समझाते हुए इसकी कथा सुनाई थी। सतयुग में महिष्मती नामक नगरी के राजा इन्द्रसेन बड़े धर्मनिष्ठ और दयालु थे। एक दिन नारद मुनि उनसे मिलने आए और बताया कि उनके पिता एकादशी व्रत के टूटने के कारण यमलोक में हैं।

नारद मुनि ने सुझाव दिया कि यदि राजा इन्द्रसेन विधिपूर्वक इंदिरा एकादशी व्रत कर उसका पुण्य अपने पिता को अर्पित करें तो उन्हें मुक्ति मिल जाएगी। नारद मुनि के बताए नियमों का पालन करते हुए राजा इन्द्रसेन ने इंदिरा एकादशी व्रत किया। इस व्रत के पुण्यफल से उनके पिता को वैकुंठ लोक की प्राप्ति हुई। तभी से इस व्रत को पितरों के उद्धार और मोक्ष के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है।

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